February 17, 2011

दामुल: साधारण कहानी, असाधारण संवाद


 गांव के ठेठ मुहावरों के साथ देसी छौंके का प्रयोग है फिल्म की जान
यह थी कहानीः
गांव का एक मुखिया है माधो पांड़े. ब्राह्मण जाति का. उसका छोटा भाई है राधो. मुखिया के राजनीतिक दुश्मन हैं राजपूत जाति के बच्चा बाबू. माधो पांडे़ का जीतना बच्चा बाबू को गंवारा नहीं. चुनाव का समय आने पर बच्चा बाबू खुद न खड़ा होकर हरिजन जाति के गोकुल को माधो के मुकाबले का उम्मीदवार बनाते हैं. यह खबर लगते ही माधो पांड़े के सिपहसलार  दलित जाति को कब्जे में रखने के लिए दलित जाति के ही बंधुआ मजदूर पुनाई चमार को हथियार-असलहा लाने के लिए भेजते हैं. लेकिन इस बात की भनक मुखिया माधो के भाई राधो को लग जाती है कि हथियार लेकर आने के बाद पुनाई हरिजन टोला में जा सकता है, लठैत पुनाई को मार देते हैं चुनाव में हरिजन टोला के लोग बंधक बना दिये जाते हैं. माधो फिर चुनाव जीतता है. पुनाई को मारने के बाद माधो मुखिया के लठैत उसके खेतों से फसल काटने लगते हैं. संजीवना को बताया जाता है कि उसके बाप पुनाई ने जो करजा लिया था, उसके एवज में फसल काट रहे हैं. मुखिया संजीवना से सादे कागज पर अंगूठा लगवा लेते हैं. संजीवना कर्ज वापसी के वादे के साथ घर चला जाता है. उसी रात गांव में संेधमारी कर एक घर में चोरी होती है. आरोप संजीवना पर लगाया जाता है जबकि चोरी वाले रात संजीवना बुखार के मारे घर में तड़पता होता है..मुखिया पुलिस से बचाने के एवज में संजीवना से इलाके में जाकर पशुओं की चेारी करने के लिए विवश कर देता है. माधो मुखिया की नजर गांव के ही एक बाल विधवा महत्माईन के देह और खेत दोनों पर रहती है. दूसरी ओर गरीबी से तंग गांव के दलित पंजाब जाने की तैयारी करते हैं. हरिजन मजदूरों के जाने से राधो का काम गड़बड़ा जाता क्योंकि वह इन्हीं मजदूरों का शोषण कर ठेकेदारी में कमाता था. रास्ते में पलायन करनेवाले मजदूरों को मारा जाता है. उनकी बस्ती जला दी जाती है. मामला यह बनाया गया कि दूसरे गांव के डकैतों से भिंड़ने में मारे गये. संजीवना और महत्माईन राधो के इस कारनामे के खिलाफ मंुह खोलते हैं. मुखिया महत्माईन को मरवा डालता है और उस हत्या में संजीवना को फंसा देता है.यह सब खेल करने के पहले माधो मुखिया और बच्चा बाबू एक हो जाते हैं. बच्चा बाबू को हरिजनों को भ्रम का पाठ पढ़ाने के बदले में महत्माईन की जमीन देने का वादा माधो मुखिया करते हैं. संजीवना को फांसी की सजा होती है. माधो मुखिया सब करने के बाद एक शाम चैपाल में अलाव ताप रहे होते है तभी संजीवना की पत्नी रजूली गंड़ासे से मुखिया पर प्रहार करती है. माधो का सिर धड़ से अलग हो जाता है.
संवादों की बानगी
-तड़प रहा है रजपूतवा. अरे एक अंडा भी आ जाये बस्ती से भोट देने त पेसाब कर दीजिएगा हमरे मोछ पर मालिक.
- अगर माधो पांड़े का सतरंगा खेल जानोगे तो तरवा से पसेना निकलेगा, पसेना...
- चमार को भोट देने के लिए कहियेगा बच्चा बाबू तो ई तो सुअर के गुलाबजल से नहवावे वाला बात हुआ न! एक बेर किलियर बेरेन से सोच लीजिए बच्चा बाबू.
- बेरेन तो आपलोगों का मारा गया है. अरे गोकुलवा को खड़ा कउन किया है? हम. जितायेगा कउन? हम. तो राज का करेगा चमार. आपलोग समझिये नहीं रहे हैं. बाभन के राज को खत्म करने के लिए ईहे आखिरी पोलटिस बच गया है.
- अब जरा परची बना द हो दामु बाबू, कउवा बोले से पहिले लउटना है.
- चेहरा एकदम पीयर- कल्हार हुआ है. का बात है, बीमार-उमार थी का?
- जनावर के ब्यौपार में कउनो झंझट नहीं है.
- बड़ी तफलीक में है हमरा साला.
- बस कर रे रंडी,छू लिया तो हमरा स्नान करना पड़ेगा. अरे चलो भागो इहां से, का हो रहा है इहां, रंडी के नाच!
- मुंहझउंसा, अभी त लउटा है.
- काम तो उहां बदनफाड़ है मालिक लेकिन पइसा भी खूबे मिलता है पंजाब में. दिन भर में एक टैम भोजन अउर दस गो रुपइया.
- ए माधो पांड़े, छोड़ो लल्लो-चप्पो का बात. जबान का चाकू ना चलाओ. डायरेक्ट प्वाइंट पर आओ.
- महत्माईन बड़ा उड़ रही है रून्नू बाबू.
- संजीवना रे संजीवना, तू मुखियवा को काट के दामुल पर काहे नहीं चढ़ा रे संजीवना...

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