April 1, 2011

श्रीमान प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र


दरणीय प्रधानमंत्रीजी
सादर प्रणाम
इधर के दिनों में झंझावतों में लगातार घिरे रहने के बाद कल मोहाली स्टेडियम में आपको देखा। खुशमिजाजी के साथ घंटों बैठे हुए। पाकिस्तान से जीत हासिल होने के पहले तालियां बजाते हुए। सोनियाजी को भी देखा। बच्चों की तरह खुशी से चहकते-दमकते हुए। राहुलजी को देखा, जीत के जोश से उभरे जज्बे का भाव। कई-कई मंत्रियों को देखा, विपक्षी खेमे के नेताओं को भी। आमिर खान, प्रीटी जिंटा, सुनील शेट्टी जैसे बॉलीवुड कलाकारों को भी। अच्छा लग रहा था। सच कह रहा हूं। पूरा देश एक छत के नीचे। स्टेडियम में 25 हजार की भीड़ के साथ इतनी देर तक देश के आलाअलम लोग शायद ही कभी इतिहास में बैठे हों। कहीं नहीं पढ़ा-सुना। किसे धन्यवाद दूं, समझ में नहीं आ रहा। क्रिकेट खेल के अविष्कारकों को, जिनकी वजह से यह दिन आया? भारतीय टीम के खिलाड़ियों को, जिन्होंने आप सबको वहां तक बुला लिया? या नये बाजार को, जिसने क्रिकेट को बुलंदियों तक पहुंचाकर देश में राष्ट्रीयता की भावना की व्याख्या नये सिरे से करना शुरू किया है?
मेरी उतनी समझ नहीं इसलिए राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता या क्रिकेट से कूटनीति वगैरह की बातें ज्यादा पल्ले नहीं पड़ती, लेकिन पता नहीं क्यों, टीवी पर आप सबों को देखते हुए बार-बार कुछ चीजें मन को कुरेदती रहीं। इससे आप राष्ट्र के प्रति मेरी निष्ठा या राष्ट्रीयता के प्रति मेरे सम्मान में कोई कमी नहीं समझिएगा। युद्ध की स्थिति और क्रिकेट के खेल, इन दोनों समय में ही राष्ट्र का एकीकरण होता है, राष्ट्रीयता की भावना जगती है, इसे मैं भी जानने-समझने-मानने लगा हूं। वरना, इस देश में कितने देश बन रहे हैं, हर कोई उपराष्ट्रीयता के छलावे के साथ अपनी ब्रांडिंग में लगा हुआ है, इससे मेरे जैसे लोग अवगत हैं। मेरी समझदारी पर तरस जरूर खाइएगा लेकिन राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता के संदर्भ में मेरी निष्ठा पर संदेह न कीजिएगा, प्लीज!
इसे सनकमिजाजी या पागलपंथी ही कहिए सर कि टीवी पर क्रिकेट का रोमांच परवान चढ़ रहा था और मेरे आंखों के सामने उस वक्त दो-ढाई साल पहले बिहार का एक दृश्य उभर रहा था। वही 2008 के कोसी के कोप का दृश्य, जब 25 लाख से अधिक की आबादी हाहाकार मचा रही थी। कोसी के तांडव से लोग मर रहे थे, तब केंद्र से आप लोगों को पहुंचने में चार-पांच दिनों का समय लग गया था। यह तय करने में कि यह राष्ट्रीय मामला है या नहीं, 100 घंटे से अधिक का समय लग गया था। याद है न सर! कोसी के इलाके अभी-अभी चार-पांच रातें गुजारकर लौटा हूं, जहां विकास के नाम पर महासेतु बनाकर फिर विनाश की बुनियाद तैयार कर रहे हैं आप दिल्लीवाले। तो शायद कोसी यात्रा का असर है कि क्रिकेट के समय में भी उसी की खुमारी छायी हुई थी। तभी तो आप और सोनियाजी वगैरह-वगैरह जब-जब दिख रहे थे, तब-तब कोसी के कोप वाले ढाई साल पहले के दृश्य सामने आ-जा रहे थे और फिर आपलोग भी याद आ रह थे।
यह बेवकूफी है सर, मुझे पता है लेकिन क्या करूं? राहुलजी को किसी बच्चे की तरह चहकते हुए देखकर अच्छा लगा। उन्हें कितना मिस कर रहा था क्रिकेट के समय, कह नहीं सकता। वे ही तो इकलौते दिल्लीवाले हैं, जो आदिवासियों को सखा-भाई-बंधु वगैरह-वगैरह बताते हैं। गांव में जाकर रात गुजारते हैं। झारखंड में पिछले दिनों हुए राष्ट्रीय खेल का आयोजन भी कल टीवी पर क्रिकेट देखते हुए बार-बार याद आने लगा। लगभग सात हजार खिलाड़ी देश के कोने-कोने से झारखंड में पहुंचे थे। वैसे-वैसे खेलों के खिलाड़ी, जो खेल सरकार के ही रहमोकरम पर जिंदा हैं। क्रिकेट के खिलाड़ियों से कोई कम जोश, जज्बा या उत्साह उनमें नहीं था सर, सच कह रहा हूं, हर दिन खेल में मौजूद था मैं। राष्ट्रीय खेल था सर, 34वां राष्ट्रीय खेल लेकिन आपलोगों में से कोई भी नहीं आया उसमें। न उदघाटन करने, न समापन करने। आप प्रधानमंत्री हैं, आपकी व्यस्तता का अंदाजा सबको है। राष्ट्रपति के आने के पेंच का भी अंदाजा हम जैसे लोगों को है। उपराष्ट्रपति भी नहीं आ सके यहां। और तो और, क्या कहूं सर, आपके खेल मंत्री भी नहीं आये थे यहां। आपके खेल मंत्री वही माकन साहब हैं न सर, जो कल तक इसी झारखंड में कांग्रेस के प्रभारी हुआ करते थे और गाहे-बगाहे यहां पहुंचकर मीडिया वालों के सामने झारखंड-झारखंड की रट किसी बच्चे की तरह लगाते थे। वे क्यों नहीं आये झारखंड के राष्ट्रीय खेल में सर, उनको आपलोगों ने क्यों नहीं भेज दिया जबरिया, इसका जवाब अब तक नहीं मिल पा रहा। आप सब व्यस्त रहे होंगे, खेल मंत्री के लिए तो वह एक बड़ा आयोजन था, वह तो आते, उन्हें तो भेजते आपलोग।
बहुत सवाल पूछते हैं अपने झारखंडी भाई लोग। कहते हैं कि कल संपदा का दोहन करना होगा तो झारखंड राष्ट्र का अभिन्न अंग हो जाएगा, कल माओवादियों का हमला होगा तो राज्य के वर्तमान और भविष्य का दिल्ली से ही खाका तैयार होगा और राज्य बनने के बाद पहली बार एक राष्ट्रीय आयोजन हो रहा था, तो यह राष्ट्र का अभिन्न अंग नहीं था। किसी को समय नहीं मिला। मालूम है सर, यहां के लोग पिछड़े हैं। मीन माइंडेड हैं, इसलिए ऐसी छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ बना देते हैं। सच कह रहा हूं सर, मैं आपलोगों के क्रिकेटिया प्रेम का जरा भी विरोधी नहीं वरना यह सवाल ही सबसे पहले पूछता कि क्या किसी देश का पूरा सिस्टम एक खेल के लिए ठप किया जा सकता है! घोषित तौर पर। तब यह भी पूछता कि आखिर अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस जैसे देश क्या अब तक इस खेल से इसी डर से तौबा करते आये हैं कि यह राष्ट्रविध्वंसक खेल है, जो एक बार में पूरे राष्ट्र की गति को आठ-आठ घंटे तक रोक कर रख देता है। अमेरिका, चीनवाले खेल में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हैं, यह तो आप जानते ही हैं न सर। ओलिंपिक में देखे हैं कि नहीं। मैं यह सब पचड़ा भरा सवाल नहीं कर रहा। एक मामूली नागरिक हूं। सवाल नहीं पूछ सकता। बस जी में आया तो आपसे साझा कर रहा हूं कि क्या वाकई हमारा देश राष्ट्रीयता के संकट के दौर से गुजर रहा है! बस यूं ही पूछ रहा हूं, अन्यथा न लीजिएगा।
आपका ही
निराला

1 comment:

gunjesh said...

क्या कहा जाये अगर मन की बात लिखी हुई मिल जाय। आपका ब्लॉग पहली बार देखा वाया मोहल्ला लाइव, प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी पढ़ने आया था और मछुआरों की स्थिति से रु-बरु हुआ ... यह वैदिक युगों का कोई श्राप है या लोकतन्त्र की एक बड़ी कमी यह तो समय ही तय करेगा।